शुक्रवार, 13 नवंबर 2009
इंटरनेट का इंद्रजाल
वक्त आ गया है कि इंटरनेट का सही इस्तेमाल कैसे हो, इस पर विश्लेषण किया जाए। इंटरनेट 40 साल का हो चुका है। सितंबर 1969 में लास एंजिल्स के कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में एक कम्प्यूटर ने दूसरे कम्प्यूटर को ई-मेल भेजा था। तब से लेकर आज तक इंटरनेट के विकास का दौर जारी है। अब तो मामला ई-मेल से काफी आगे बढ़कर चैटिंग और सोशल नेटवर्किंग साइट्स तक पहुँच चुका है। इंटरनेट के वर्चुअल स्पेस पर एकाधिकार की होड़, विज्ञापनदाताओं को ज्यादा से ज्यादा आकर्षित करने की चाह और ऑनलाइन बाजार में खुद को सबसे बेहतर साबित करने की मशक्कत भी दिखने लगी है, लेकिन लगने लगा है कि इंटरनेट का उद्देश्य धूमिल होता जा रहा है। लोग इसे जरूरत की विषयवस्तु समझने की बजाय शगल यंत्र समझने लगे हैं। हालाँकि इसमें शक नहीं है कि इंटरनेट सूचना क्रांति का सबसे सशक्त माध्यम है। यहाँ नई-नई जानकारियाँ हैं और दुर्लभ वीडियो फुटेज भी। बावजूद इसके पोर्नोग्राफी के ढेरों फुटेज भी यहाँ मिल जाते हैं। 'गाँधीयन थाट्स' या 'मार्क्ससिस्ट थ्योरी' को गूगल के सर्च इंजन में डालने पर करीब हजार लिंक दिखते हैं। इसके जरिए हजारों वेब पन्नों तक पहुँचा जा सकता है, लेकिन सर्च इंजन में पोर्न या सेक्स शब्द डालने पर लाखों लिंक दिखने शुरू हो जाते हैं और इससे कहीं ज्यादा वेब पन्नो। हालाँकि सर्च इंजन में आपको 'सेक्स' या 'पोर्न' का मतलब कम ही मिलेगा। एक आकलन के मुताबिक जिस वक्त गूगल के सर्च इंजन में आपने पोर्न या सेक्स टाइप किया था, उसी वक्त 372 और लोग भी यही काम कर रहे थे। इससे साफ होता है कि इंटरनेट पर सेक्स-पोर्न का वर्चुअल रूप कितना बिकाऊ हो गया है।वैसे सेक्स-पोर्न के वर्चुअल बाजार के खिलाफ कुछ कंपनियाँ इकट्ठी हो रही हैं। हाल ही में माइक्रोसॉफ्ट और याहू के करार के तहत याहू अपनी वेबसाइट्स पर माइक्रोसॉफ्ट के नए सर्च इंजन बिग डॉट का इस्तेमाल करेगा, जहाँ सेक्स संबंधी सर्च संभव नहीं होगा, लेकिन अभी और भी कंपनियों को आगे आना होगा, वहीं दूसरी ओर दुनिया भर के मुल्कों को इंटरनेट पर बढ़ती अश्लील सामग्री के खिलाफ कानून बनाने होंगे और जागरूकता अभियान भी चलाने होंगे।
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